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उसकी खामोश आँखों में

उसकी खामोश आँखों में , मैं अक्सर अपना पता ढूंढता हुं! मिला तो नहीं वो मुझे, पर मैं उस के ना मिलने की खुद से ही अक्सर वजह पूछता हुं! उस से ना मिलने में, भी मेरा ही कोई कसूर होगा! हां जमाने का कोई तो दस्तूर होगा! वो वे वजह ही नहीं मुझसे दूर होगा! मेरे हो के भी ना होने का भ्रम उसे भी जरूर होगा! हां मुझको यकी है एक दिन वो मेरे करीब होगा जिस दिन जमाने का बनाया ना कोई दस्तूर होगा! ना खुदा का ही कोई रूल होगा! ना मेरा ही कोई कसूर होगा! उस दिन वो मेरे करीब जरूर होगा! उस दिन वो मेरे करीब जरूर होगा !

तेरी बनाई इस दुनियां में, मैं क्यू आया?

जब दिल उसने मेरा तोड़ा तब भी मैं हंसकर खामोश रहा! जब साथ उसने मेरा छोड़ा तब भी मैं मौन बेहिसाब रहा! जाने मैं किस सोच की दुनिया में खोया था! जाने मैं किस यादों की वस्ति में सोया था! जब नींद से मैं जागा उठके उसके पीछे भागा! देखा तो वो अपनी ही हस्ती में खोया था! उससे जुदा हो के मैं बहुत तड़पा बहुत रोया था!आँख के आँसू भी सूख गए सपने भी सारे टूट गए! देखा तो आपने भी पीछे छूट गए! पीछे जो हटना चाह तो यादों की खाई थी! आगे जो बढ़ना चाहा तो अपनो से जुदाई थी! ये सोच के मैं बहुत पछताया तेरी बनाई इस दुनियां में आखिर मैं क्यू आया! मैने हार जगह खुद को सब से जुदा ही पाया! ना दुनिया के बनाए ये दस्तूर निभा पाया! ना खुद को खुद से ही मिला पाया! जाने तेरी इस दुनिया में मैं क्यू आया! जाने तेरी इस दुनिया में मैं क्यू आया