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Showing posts from 2019

ऐ ग़ालिब सुन ये जो प्यार की कहानी

ऐ ग़ालिब सुन ये जो प्यार की कहानी मैं अधूरी छोड़कर जा रहा हूं। और कुछ नहीं तेरे मयखाने में दो घूंट पीने आ रहा हूं। क्या पता मरने के बाद भी कबर में ना मिले सुकू। इसलिए ही मैं मरने से पहले पीके सुकून पाना चाह रहा हूं। हसरतें जो दिल में रह गई बाकी उन्हें में मरने से पहले भुलाना चाह रहा हूं। इसीलिए तो मैं रोज तेरे मयखाने में आ रहा हूं

शायर हूं मैं 1

मेरे दिल में तो वो था और उसकी हसरतों का साया था पर बहुत कमबख्त दिल था उसका जो खुदा तूने बनाया था जज्बात तो थे ही नहीं उसके दिल में उसने तो हमें हमारे हालातों पे आजमाया था। गम की दास्तां बहुत है दुनिया को सुनाने के लिए गम की दास्तां बहुत है दुनिया को सुनाने के लिए मगर मैं तो जी रहा हूं दोस्तों मुस्कुराकर बस जिंदगी को आजमाने के लिए। क्यों आज सांसे उदास है, क्यों आज दिल खामोश है बिना गुनाह के भी सजा हमको ही मिले वाह रे खुदा तेरा क्या खूब इंसाफ है।

मेरी एक अल्फाज की बेबसी

मेरी एक अल्फाज की बेबसी को वो मेरा पूरा अंदाज समझ बैठा! मेरे एक अल्फाज की बेबसी को वो मेरा पूरा अंदाज समझ बैठा! और कितना खुदगर्ज है वो कि मेरी एक नाकामी को अपनी जीत का आगाज समझ बैठा! और कितना खुदगर्ज है वो कि मेरी एक नाकामी को अपनी जीतका आगाज समझ बैठा! और चोट खाई है उसके हाथों मोहब्बत में! और चोट खाई है उसके हाथों मोहब्बत में! और वही देखो मेरे हर जख्म को अपनी खुशी का एहसास समझ बैठा! और वही देखो मेरे हर जख्म को अपनी खुशी का एहसास समझ बैठा! कितना बेदर्द है वो और कितना बेदर्द है वो! कि मेरीे हर बेबसी को अपने दिल के साज का अंदाज समझ बैठा! कि मेरीे हर बेबसी को अपने दिल के साज का अंदाज समझ बैठा! और यही है फितरत उसकी और यही है फितरत उसकी! कि बेवफाई करकर भी उसे अपना  कोई खूवसूरत आंदाज समझ बैठा! और खुश है वो जीतकर मुझसे और खुश है वो जीत कर मुझसे! पर मैं हार कर भी  उस से, उसी को अपने दिल का एहसास समझ बैठा! पर मैं हार कर भी  उस से, उसी को अपने दिल का एहसास समझ बैठा! मगर कितना खुदगर्ज है वो कि मेरी एक नाकामी को अपनी जीत का आगाज समझ बैठा!

ख्वाहिशें उनकी रखो

ख्वाहिशें उनकी रखो जो ख्वाबों में नजर आते हो उनसे क्यों नजरें मिलाते हो जो बेवजह ही नजरें चुराते हो और दामन उसका थामो जो इसके काबिल हो उसके पीछे क्यों जाते हो जो दामन से ही सारे जमाने में आग लगाते हैं

चाहत से ज्यादा जुनून है

चाहत से ज्यादा जुनून है कहां अब पहले जैसा सुकून है एक हसरत थी जिंदगी में जो अब बदल गई है फितरत ऐ बेरुखी में, ना उसका है ना मेरा कसूर है कुछ आदतें हैं जो उसको ना कबूल हैं कुछ आदतें हैं जो मेरा उसूल हैं अब बस ठन गई है इसी में कि जिंदगी बीत जाएगी एक दूसरे को ना समझने की कमी में।

है तो नहीं तू मगर सुन ले

है तो नहीं तू मगर सुन ले तेरे इश्क में मैं क्या से क्या हो गया हूं, तेरे लिए ही नहीं मैं अपने लिए भी बुरा हो गया हूं, हर रात में जागता हूं नींदों से अपनी भागता हूं तेरे ख्वाबों में झांकता हूं अब मैं थोड़ा सिरफिरा सा हो गया हूं, अब मैं मैं ना रहा मैं जाने कहां खो गया हूं, मैं अपने लिए भी अब बुरा हो गया हूं।

शायर हूं मैं 1

मेरे दिल में तो वो था और उसकी हसरतों का साया था पर बहुत कमबख्त दिल था उसका जो खुदा तूने बनाया था जज्बात तो थे ही नहीं उसके दिल में  उसने तो हमें हमारे हालातों पे आजमाया था। गम की दास्तां बहुत है दुनिया को सुनाने के लिए  गम की दास्तां बहुत है दुनिया को सुनाने के लिए  मगर मैं तो जी रहा हूं दोस्तों  मुस्कुराकर बस जिंदगी को आजमाने के लिए। क्यों आज सांसे उदास है, क्यों आज दिल खामोश है बिना गुनाह के भी सजा हमको ही मिले  वाह रे खुदा तेरा क्या खूब इंसाफ है। जब भी जी चाहे यूं ही दिल दुखा देते हो तुम हमारे हाल पर इस तरह मुस्कुरा देते हो तुम अपना फितरत ए इश्क इसी तरह जता देते हो तुम  कि हम को जानते ही नहीं जमाने को ये भी बता देते हो तुम। दिल का आईना टूटा तो क्या  एक टुकड़ा शीशे का सीने में चुभने तो दे दो कदम तो तू दूर गया है मुझे अब इसी मुकाम पर रुकने तो दे। कोई मेरा दर्द ना समझ जाए इसलिए मैं अक्सर खामोश रहता हूं लोग कहते हैं मुझको बेजुबान  मगर मैं जुबा रखकर भी कहां किसी से कुछ कहता हूं इस बेदर्द जमाने के सारे दर्द भी में चुपचाप ही तो सहता हूं।

कमबख्त ए आशिकी

कमबख्त ए आशिकी तेरी बाहों से निकलकर अब उसकी पनाहों में जाने को दिल नहीं करता क्या खूब हैं हम जिसने बनाया हमको, अब उसी से रिश्ता निभाने को दिल नहीं करता और कितने खुदगर्ज हो गए हैं मोहब्बत में हम कि अपने मां बाप को ही अपना बताने को दिल नहीं करता दो कदम क्या चले गैर के साथ, अब बचपन की उंगली पकड़ अपने ही घर के आंगन में जाने को दिल नहीं करता।

खाली किताबों के पन्नों पर (written by Suman Vashisht Bharadwaj)

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Unako Apani Chahaton Ka Kuchh Yoon Gumaan Ho Baitha

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शायर हूं मैं

शायर हूं मैं यूं ही शायरी करूंगा इस दिल के टूटने से यूं ही नहीं मरूंगा मरना तो है एक रोज ए जिंदगी मरना तो है एक रोज ए जिंदगी पर तेरी पनाहों में यूं ही घुट घुट के ना मरूंगा अपनी चाहत का मोल तुझे चुका ए जिंदगी मैं सुकून की मौत मरूंगा। मैं अगर गलत हूं तो मुझे सजा देना कभी ना उससे मिलने की दुआ देना मगर सुनले ए खुदा, मेरे पाक दिल में किसी और को भी ना कभी जगाहा देना क्या बताऊं इस दिल की दास्तां, बेवजह ही टूट गया जिस रास्ते पर जाना नहीं था उस रास्ते पर जाकर मुझसे भी रूठ गया इतने टुकड़े हुए इस दिल के, इतने टुकड़े हुए इस दिल के कि अब मेरी धड़कन का घर भी छूट गया देखो ये दिल कहता है अब मुझसे कि,प्यार किया तुने और मैं टुट गया उसको मेरा इस तरह देखना भी गवारा ना था उसको मेरा इस तरह देखना भी गवारा ना था  आशिक था मैं कोई आवारा ना था जिसे मैं समझ बैठा था अपने अरमानों का फूल जिसे मैं समझ बैठा था और अपने अरमानों का फूल वो तो मेरी चाहत पर लगी कोई धूल था सच कहूं अगर, सच कहूं अगर तो वो मेरा पहला प्यार और आखरी भूल था दिलों से खेलना ही शायद उसका उसूल था।

वो लड़की मेरे मन का उजला सा दर्पण लगती है

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वो लड़की मेरे मन का उजला सा दर्पण लगती है   भीगती बारिश में जैसे छत पर कोई यौवन लगती है  सुनहरी सी धूप की वो पहली किरण लगती है वीणा के तारों से टकराने वाली जैसे कोई धुन लगती है खाली दिल को भरने वाला वो अपनापन लगती है मेरे एहसासों को वो सीता सी पावन लगती है पैरों में बजती पायल की जैसे छनछन लगती है हाथों में खनकता जैसे कोई सुंदर कंगन लगती है पूजा की थाली हाथों में लिए जैसे वो कोई जोगन लगती है गंगा जमुना सरस्वती त्रिवेणी का वो संगम लगती है माथे पर सुंदर बिंदिया उसके वो क्या किसी देवी से कम लगती है वो लड़की मेरे मन का उजला सा दर्पण लगती है

उनको अपनी चाहतों का कुछ यूँ गुमाँ हो बैठा,

उनको अपनी चाहतों का कुछ यूँ गुमाँ हो बैठा, कुछ ख्वाहिशें क्या दे गए वो हमको, उनका दिल उनके लिए जैसे खुदा हो बेठा। जश्न ए इश्क वो मनाते रहे, आशिकी के गीत गाते रहे, दिल हमारा टूटा वजह भी हम को ही बताते रहे। महफिले वो सजाते रहे, चिराग वो जलाते रहे, और दर्द की वजह भी हमको ही बताते रहे। उनके इल्जामों से हम तो डूब गए गर्द ए दरिया में, उनके इल्जामों से हम तो डूब गए गर्द ए दरिया में, और वो देखो हमारा हस कर मजाक बनाते रहे। क्या खूब मोहब्बत थी उनकी, क्या खूब मोहब्बत थी उनकी, कि हमें दीवाना बना कर खुद को बेगाना बताते रहे जब धड़कनें हमारी थमती रही, जब सांस हमारी सिसकती रही, हम इस दुनिया से रुखसत होते रहे, वो देखो बेरहम होकर, किसी और के नाम की मेहंदी  हथेली पर रचाते रहे। ना आये वो बेरहम जनाजे पर भी मेरे , ना आये वो बेरहम जनाजे पर भी मेरे, हम उनका इंतजार कर अपनी कब्र सजाते रहे। क्या खूब मोहब्बत थी उनकी, क्या खूब मोहब्बत थी उनकी, कि हर बार मेरी चाहत को आजमाते रहे, हम दिल ही दिल सिसकता रहे, और वो मुस्कुराता रहे।

मैं पीने की मैं खाने में जाने की

मै पीने की मै खाने में जाने की आदत तो बहुत है हमको, मगर कोई मेरे जमीर से पूछे, मगर कोई मेरे जमीर से पूछे कि मुझको इसकी इजाजत कौन देगा, ना पीने वा ली वो पहले सी आदत कौन देगा जो हसरतें थी सारी मै खानों में खाली हो गई  चाहते भी अब तो जामों की सवाली हो गई राहगुजर बन के रह गई जिंदगी मैं खानों के रास्ते पर घर की गलियां तो अब अनजानी हो गई जिन आंखों का नशा बिन पिए ही चढ़ जाता था वो आंखें भी अब तो बेगानी हो गई जिस मैं कदे से थी कभी हमारी रंजिशें, अब वो मैं कदे ही हमारे ठिकाने हो गए शराबी नाम हो गया अब हमारा, इसी नाम से हमारी पहचान हो गई जिंदगी बिन पिए भी बदनाम थी क्या हुआ जो पीके और बदनाम हो गई वो कल भी मेरी गलियों से अनजान थी आज और अनजान हो गई मोहब्बत की दुनिया तो मेरी वैसे भी गुमनाम हो गई

शायर हूं मैं 0

1. प्यार करता हूं जज्बात रखता हूं  कोई कुछ भी कहे मुझसे पर मैं अपने दिल की ही सुनता हूं हालात कितनी भी हो मेरे खिलाफ  पर मैं अपनी राह खुद ही चुनता हूँ। 2. ये मसले हैे कुछ यूं हल्ला हो पाएंगे  दिलों के जख्मों यूं ही मरहम ना हो जाएंगे बीते हुए कल के गम आज हमदम ना हो जाएंगे 3. मैं फलक से उसके लिए चांद भी ले आता वो कहता तो मैं पूरा आसमान भी ले आता, वो कहता तो सही मैं उसके लिए अपनी जान   भी दे आता  साथ उसका मुझे जान से भी बढ़कर था  पर उसके दो अल्फ़ाज़ जुदाई वाले मैं कहां से  पता   वो कहता तो मैं उसके लिए जान भी दे आता। 4. मैं उल्फत के वो सारे फसाने पीछे छोड़ आया।          मैं अपनी दोस्ती के वो हसीन जमाने के पीछे छोड़ आया अब तो तन्हा खड़ा हूं इस मोड़ पर।  हा मैं अपने बचपन के वो सारे ठिकाने पीछे छोड़ आया।  बस उन हसीन यादों का दर्द साथ ले आया। जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया। 5. कहीं ख्वाबों की बारिश है कहीं सपनों की फरमाइश है  जिंदगी दोस्तों बहुत बड़ी आजमाइश है। 6. किस्मत ने जैसा चाहा वैसे ढल गए हम  बहुत  संभल के चले फिर भ

यूं जो तूम मुझसे

यूं जो तूम मुझसे दूर जाने की साजिश कर रहे हो यूं जो तुम मुझसे दूर जाने की साजिश कर रहे हो मुझे मालूम है दिल ही दिल मुझसे मिलने की भी गुजारिश कर रहे हो। मुझे आता है तुम को मनाना मगर मैं क्यों मनाऊं मुझे आता है तुम को मनाना मगर मैं क्यों मनाऊं तुम्हारी साजिशों को और क्यों बढ़ाऊं (Written by Suman Vashisht Bharadwaj)

कोई पागल समझता है, कोई दीवाना समझता है

written by Suman Vasistha Bhardwaj कोई पागल समझता है, कोई दीवाना समझता है मेरी मोहब्बत को यहाँ हर कोई,अफसाना समझता  है डूब कर इस तरह मेरा मोहब्बत में दीवाना हो जाना,  कहां कोई स्याना समझता है, प्यार को मेरे कहां ये जमाना समझता है। मेरी मोहब्बत को यहाँ हर कोई फसान समझता है यहाँ मीरा को समझते हैं कबीरा को समझते हैं मगर मोहब्बत में डूबे हुए, फकीरा को यहाँ कौन समझता है मुझे जमाने को नहीं समझाना,मुझे उसको है बतलाना जिसे मेरा दिल अपना ठिकाना समझता है। मेरी आंखों से बहते आंसू मेरी चाहत की निशानी है जो वो समझे तो सीप का मोती, जो वो ना समझे तो बारिश का पानी है समुंदर पीर का जो अन्दर है, ये मेरे प्यार की पावन सी कहानी है मेरी चाहत को दिल में तू बसाले ना, मगर सुनले जो मेरे दिल की ना हो पाई, वो तेरे भी दिल की होना सकेगी इस भवरे की कहानी बस उस कुमुदिनी को सुनानी है जो राध की श्याम ने ना जानी, जो सीता की राम ने ना मानि,  हमारी भी बस यही कहानी है, चहता की बस यही दस्तूर निशानी है ,  के सच्चे आशिक को मिलती पागल और दीवानों की ही नाम ए निशानी है।

जाने क्यों तेरी तारीफ करना

Written by Suman Vashisht Bharadwaj तबस्सुम की पहली ग़ज़ल है तू मेरे शहर में आया हुआ वो कल है तू जिसे देखकर धड़कती है मेरी धड़कन मेरा बीता हुआ वो पल है तू। माना कि महबूब सी महबूब है तू परियों से भी खूब है तू गुलशन में खिले हुए गुलाब की तरह कोई नायाब फूल है तू तितलियों के रंग जैसा कोई नूर है तू और एक खूबसूरत कोहिनूर है तू। जाने क्यों तेरी तारीफ करना दिल को इतना भाता है जबकि मालूम है तुझे अपने हुस्न पर भी गुरूर आता है। तोड़कर दिल मेरा तू हर बार इस तरह ही मुस्कुराता है तेरी हर अदा में बेवफाई का रंग नजर आता है वो बेरुखी से नजरें चुराना तेरा दुपट्टा झटका के यूं चले जाना तेरा आज भी याद है मुझको वो ज़माना तेरा जाने क्यों तेरी तारीफ करना फिर भी दिल को भाता है। तेरी हर अदाएं किरदार पर दिल ग़ज़ल लिखना चाहता है मुझे तेरी बेवफाई का अंदाज़ भी बहुत पसंद आता है जाने क्यों तेरी तारीफ करना आज भी दिल भाता है।

प्यार में तिरस्कार

अभी अभी तो आया हूं, अभी जाने की बात करते हो। मैं तुमसे बेपनाह प्यार करता हूं, तुम बार-बार मेरा तिरस्कार करते हो। इतना ना सोचो मेरे बारे में, मैं तुम्हें समझ नहीं आऊंगा। मैं घोर की धूप नहीं जो ढल जाऊंगा। मैं उगता हुआ सूरज भी नहीं जो शाम होते ही उतर जाऊंगा। मैं वो नदी भी नहीं जो समुंदर में मिल जाऊंगा। मैं वो हवा भी नहीं जो चलते चलते थम जाऊंगा। मैं वो रात भी नहीं जो सुबह में बदल जाऊंगा। मैं वो भंवरा भी नहीं जो हर कली पर मचल जाऊंगा। मैं वो प्रेमी हूं जो तुम्हें पाने की चाहत में हर हद से गुजर जाऊंगा। बार-बार इतना तिरस्कार देख तुम्हारा एक दिन मैं भी तुम्हारी तरहा ही बदल जाऊंगा। फिर जब भी सोचोगे मेरे बारे में, फिर जब भी सोचोगे मेरे बारे में तुम। तो मैं तुम्हें तुम्हारी तरह ही पत्थर दिल नजर आऊंगा, पत्थर दिल नजर आऊंगा,मै भी एक दिन बदल जाऊंगा। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

ता उम्र हम जीने की जद्दोजहद

ता उम्र हम जीने की जद्दोजहद करते रहे, जिंदगी हमसे हम जिंदगी से लड़ते रहे। उम्मीदों की गागर भर्ती रही झलकती रही। जिंदगी कतरा कतरा कर गुजरती रही। ख्वाहिशें बनती रही बिगड़ती रही। सपने आंखों में चढ़ते रहे उतरते रहे। हम जिंदगी जीने की ख्वाहिश से आगे बढ़ते रहे। मुश्किलें हर मोड़ पर हमारे कदम पकड़ती रही। कभी वो हमसे कभी हम उस से लड़ते रहे। जिंदगी में खुशियों के पड़ाव भी आए, गम के ठहराव भी आए। लेकिन हमारे कदम किसी मोड़ पर ना डगमगाए। हम जिंदगी की जद्दोजहद से कभी ना घबराए। अगर हम हारे तो मौत से हारे, जिंदगी हमें कहां हरा पाई। हालांकि जिंदगी जीने की जद्दोजहद में मौत की फिक्र भी हमें कभी कहां सता पाई। वो बात और है कि जिंदगी की जद्दोजहद करते करते, जिंदगी हमें अपने आखिरी पड़ाव पर ले ही आई। मौत की गोद में सुला कर खामोशी की लोरी सुना कर, जिंदगी चुपके से जुदा हो गई।                मौत बनी महबूबा, जिंदगी बेवफ़ा हो गई। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

वो खुद को खुदा कहता है

वो खुद को खुदा कहता है । मेरा रहनुमा कहता है। जो खुद पत्थर की मूरत में रहता है। दर्द मैं सहता हूं हालात वो देता है। आंसू मैं बहाता हूं वजा वो देता है। धड़कन मेरी चलती है सांसे वो देता है। जज्बात मेरे होते हैं एहसास को देता है। खुशी या गम मेरा होता है, मगर उन्हें आवाज वो देता है। मेहनत मेरी होती है मगर फल वो देता है। जो खुद पत्थर की मूरत में रहता है खुद को खुदा कहता है। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

कैसे आ जाती हैं तुमको नींद बगैर कुछ कहे

कैसे आ जाती है तुमको नींद मुझसे कुछ कहे बगैर। मुझे तो नींद में भी तुमसे कुछ कहना होता है। बगैर मेरे बारे में सोचे कैसे सो जाते हो तुम।  मुझे तो नींद में भी बस तुम्हारे बारे में सोचना होता है। क्यों नहीं होता तुम्हें मेरे सपनों का एहसास। मुझे तो तुम्हारे हर सपने का एहसास होता है। क्योंकि तुम नींद में भी बेरहम होते हो। पर मुझे नींद में भी तुम्हारा ही इंतज़ार होता है। इसलिए तो तुम सुकून से सोते हो, और मेरी पलकों को नींद में भी आंसुओं से भिगोते हो। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

दोस्ती के जमाने

दोस्ती के जमाने कभी पुराने नहीं होते। और दोस्त कभी बीते हुए अफसाने नहीं होते। अगर सच्ची है दोस्ती तो दिल से बाहर कभी दोस्तों के ठिकाने नहीं होते। ए दोस्त दोस्तों की पहचान कभी मुश्किल में ना कर तू। क्योंकि सच्चे दोस्तों के दिल में कभी गिले-शिकवे पुराने नहीं होते। साथ जो तेरी हर मुश्किल में खड़े होते हैं दोस्त वही तो सबसे बड़े होते हैं। जो तेरे हर गम में तेरा साथ निभाते हैं, तेरी हर खुशी में खुशी के आंसू बहाते हैं, और गुस्से में तुझे गाली भी दे जाते हैं, वही दोस्त तो तेरी उंगली पकड़ हर मुश्किल पड़ाव पर तुझे राह भी दिखाते हैं। तू कहां है सही, कहां है गलत नहीं वो तुझे ये जताते हैं, बस तेरे हर सही तेरे हर गलत में तेरे साथ खड़े हो जाते हैं। जो तुझे तुझ से भी ज्यादा चाहते हैं, तेरे लिए रातों को जाग जाते हैं, घर की खिड़की खोल तेरे लिए पीछे के रास्ते से भाग आते हैं, वही दोस्त तो उम्र भर याद आत हैं। इसी लिए दोस्तों दोस्ती के जमाने कभी पुराने नहीं होते, और दोस्त कभी बीते हुए अफसाने नहीं होते, दिल से बाहर कभी दोस्तों के ठिकाने नहीं होते। Written By Suman Vashisht Bhardwaj

खाली किताबों के पन्नों पर

मैं आजकल बेबसी की खाली किताबों के पन्नों पर अपनी किस्मत के सारे राज लिख रहा हूंl बंद लिफाफो मैं आजकल बीता हुआ हर पल हर बार लिख रहा हूं। टूटी हुई कलम से मैं आजकल आने वाले कल की हर हलचल लिख रहा हूं। बेकसी के मैं आजकल सारे मंजर लिख रहा हूं। डूबती हुई कश्ती को आजकल मैं पूरा समुंदर लिख रहा हूं। और आंधी में टूटी हुई छत को भी मैं आजकल घर लिख रहा हूं। मैं बेबसी के सारे मंजर लिख रहा हूं। धरती के सीने में खुपा हुआ मैं खंजर लिख रहा हूं।आजकल मैं हरे-भरे मैदानों को भी बंजर लिख रहा हूं। मैं उम्मीदों की हर किरण को  नाउम्मीदी की ख़ाक लिख रहा हूं। और श्मशान में जलती हुई चिताओं को मैं जिंदगी का आखिरी पड़ाव लिख रहा हूं। मैं ज़िन्दगी के बेबस खाली पन्नों पर अपनी किस्मत का हर एक अल्फाज लिख रहा हूं। Suman Vashish Bharadwaj

तिनका तिनका भ्रम

Written by Suman Vashisht Bharadwaj तिनका तिनका कर मैं भ्रम बुनता गया। किसी की ना सुनी बस अपने ही दिल की सुनता गया। ना थी मंजिल ना रास्ते थे फिर भी मैं मुकाम चुंता गया। तिनका तिनका कर मैं भ्रम बनुता गया। दिल ने मुझसे कहा तू यहीं रुक जा मैं रुक गया दिल को क्या मालूम था ये मेरा मुकाम नहीं है। मेरी मंजिल नहीं है यहां मेरा नाम नहीं है। इस दुनिया को इंसानियत से कोई काम नहीं है। सोच जब तेरे दिल में ही तेरे लिए स्वाभिमान नहीं है। तो तेरी अपनी कोई पहचान नहीं है शान नहीं है आन नहीं है। और छूट की इस दुनिया मैं आच्छाई का कोई क़द्रदान नहीं है। अगर दिल कि ना मैं  सुनता तो क्या तिनका तिनका कर भ्रम बुनता। क्या तब भी मेरी यही पहचान होती। झूठ की दुनिया में क्या सच की यही शान होती।

कितने लम्हें गुजारे है मैंने तन्हाई में

कितने लम्हें गुजारे है मैंने तन्हाई में। हर लम्हें में उसकी याद आती रही। वो कहता है रहा भूल जा तू मुझे। मैं कहता रहा तू याद मत आ मुझे। वो कहता रहा मैं दर्द हूं तेरा। मैं कहता रहा तू सुकूं है मेरा वो कहता रहा मेरे एहसास से कुछ नहीं होगा हासिल तुझे। मैं कहता रहा तेरे बाद नहीं होगी जिंदगी गवारा मुझे उसने कहा मैं बस बेबसी हूं तेरी मैंने कहा तू ही तो बस जिंदगी है मेरी, तू ही तो बस जिंदगी है मेरी, तू ही तो बस जिंदगी है मेरी

दिवाना हूँ मैं उसका

Written by Suman Vashisht Bharadwaj ए ग़ालिब सुन मोहब्बत का ये फ़साना मैं दूर तक उसकी आंखों का अफसाना बना दूंगा ए ग़ालिब सुन मोहब्बत का ये फ़साना मैं दूर तक उसकी आंखों का अफसाना बना दूंगा दिवाना हूँ मैं  उसका, उसे भी मैं एक दिन अपना दिवाना बना दूंगा। ए ग़ालिब अभी तक देखे थे जो ख़्वाब मेरी आँखों ने ए ग़ालिब अभी तक देखे थे जो ख़्वाब मेरी आँखों ने  वो  ख़्वाब मैं एक दिन उसकी आँखों तक भी पहुंचा दूंगा दिवाना हूँ मैं  उसका, उसे भी मैं एक दिन अपना दिवाना बना दूंगा। ए ग़ालिब महफूज रखूंगा मैं उम्र भर उसे अपने दिल में ए ग़ालिब महफूज रखूंगा मैं उम्र भर उसे अपने दिल में एक दिन मैं खुद को भी उसके दिल तक पहुंचा दूंगा दिवाना हूँ मैं  उसका, उसे भी मैं एक दिन अपना दिवाना बना दूंगा। ए ग़ालिब मेरी हर शामे मेहफिल रौशन होती है उसकी यादों से ए ग़ालिब मेरी हर शामे मेहफिल रौशन होती है उसकी यादों से मैं एक दिन खुद को भी उसकी शामों तक पहुंचा दूंगा दिवाना हूँ मैं  उसका, उसे भी मैं एक दिन अपना दिवाना बना दूंगा। ए ग़ालिब ना देखे अभी वो मुझको पलट कर ए ग़ालिब ना देखे अभी वो  मुझको पलट कर ए

मेरी प्यारी माँ

Written By Suman Vashisht Bhardwaj तेरे दूर जाने के ख्याल से भी मैं डरता हूँ माँ। तेरे दूर जाने के ख्याल से भी मैं डरता हूँ माँ। आंखों में नमी, होठों पे खामोशी, दिल में आता है बस एक ही सवाल। जाने मैं क्यों बड़ा हो गया।। जमाने की इस भीड़ में आ के क्यों खड़ा हो गया। तेरी उंगली पकड़ मैं आज भी चलना चाहता हूँ । तेरे आंचल तले मैं उम्र भर पालना चाहता हूँ मां। कोई छीन न ले मुझे तुझसे,कोई छीन न ले मुझे तुझसे। ये डर मुझे हमेशा सताता है। माँ जब भी होता हूँ दूर तुझसे, तो तेरा वो दुलार बहुत याद आता है। माँ वो लोरियों वाला प्यार बहुत याद आता है जब भी कोई मुझे रुलात है, माँ तेरा ही चेहरा मुझे याद आता है। माँ मैं जानता हूँ तू ही मुझे संभालेगी हर दर्द से हर तकलीफ से बचालेगी। तू मुझसे कभी दूर न जाना माँ, तेरे बिन मैं रह ना पाऊंगा। तेरी जुदाई का गम मैं सह न पाऊंगा। तू ममता की मूरत है, मेरे लिए तू सारे जहां से खूबसूरत है। तू मेरी जमीन, तू मेरा आसमां है, तू ही मेरा पूरा जहां है । तेरे बिन कोई खुशी कहां है माँ,तू ही मेरा पूरा जहां है माँ।

ऐ ग़ालिब बहुत आए होंगे तेरी महफिल में

ऐ ग़ालिब बहुत आए होंगे तेरी महफिल में टूटे हुए दिल के मेहमान। आशिकी के शेर भी तूने खूब सुनाएं होंगे। तूने अपनी शायरी से टूटे हुए  दिल भी बहलाये होंगे। पर आज एक किस्सा मैं भी बयां करता हूं। ग़ालिब अपने टूटे हुए दिल का एक हिस्सा मैं भी बयां करता हूँ। मैं इश्क के जिन कांटों की राह से अब तक चलता था संभल के। आज उन कांटों की राह में जाने क्यों खुद को फना करता हूं। ऐ ग़ालिब इस मोहब्बत की दुनिया से मैं अब हमेशा के लिए तौबा करता हूं। अब तो हर रात मैं बस मैंखानों में ही जगा करता हूं। अब हर सुबह बस पीने की दुआ करता हूं। बस अब तो मैं इस तरह ही जिया करता हूं। रोज़ ज़हर-ए आशिकी पिया करता हूं अब तो ऐ ग़ालिब मैं भी तेरे शेर सुनकर ही जिया करताहूं

मैं देश में बिखरा हुआ बस एक प्रचार हूंं

मैं देश की अधूरी सी कहानी का एक किरदार हूं। मैं देश में बिखरा हुआ बस एक प्रचार हूंं। हालांकि मैं लोकतंत्र का अटूट आधार हूं। मैं जनता के अधिकारों की धार हूं। पर आजकल मैं बस राजनेताओं की राजनीति का एक उपहार हूं। अब तो लगता है मैं बस वोटों के लिए बटती हुई शराब का इंतजार हूं। लगता है अब तो बस मैंं  प्रचार के लिए खरीदी गई कोई कार हूं। अब तो महसूस होता है जैसे मैं दीवारों पर चिपके हुए पोस्टरों का बस  इश्तिहार हूं। हां मैं लोकतंत्र का अटूट आधार हूं। पर आजकल मैं भी इतना लाचार हूं। कि भ्रष्ट दलबदल की राजनीति में घिरा हुआ बस एक हाहाकार हूं। हां मैं ही हूं आकर जाने वाले 5 साल का इंतजार, माना की मैं ही हूं देश की जनता का एक अधिकार , पर अब मैं रह गया हूं, बस लुटेरों के थैले का बाजार। जी हां, मैं ही हूं जिसे सब कहते हैं चुनाव। हां मैं ही हूं नेताओं का वर्तमान और जनता का भविष्य। जो 5 साल में एक बार आता है फिर अंधेरों में डूब जाता है। जो नेताओं की लाल बत्ती जला जाता है। और जनता की बत्ती बुझा जाता है। जो भ्रष्ट नेताओं का परचम लहरा जाता है। जो फिर से अंधेरों में देश को 5 साल के लिए ड

मैं अपना हर ग़म क़लम की स्याही को दे दूं

मैं अपनी हर गम ए दास्तां ख़ामोशी से कह दूं ये जरूरी तो नहीं! मैं उसके अल्फाज़ों को भी अपनी ही आवाज़ दे दूं ये ज़रुरी तो नहीं! उसकी दास्ताने ग़म के सिवा और भी गम है ज़िंदगी में! मैं अपना हर ग़म क़लम की स्याही को दे दूं ये ज़रूरी तो नहीं! मैं बिखरे हुए अल्फाज़ों को कागज़ पे समेटू और  वो कागज़ किसी और को दे दूं ये ज़रुरी तो नहीं! मैं अपनी शायरी में ज़िक्र करूं जिसका मैं अपनी दुआओं में फिक्र करूं जिसकी और उसका नाम जमाने के सामने ले दूं ये ज़रूरी तो नहीं! मैं अपना हर ग़म क़लम की स्याही को दे दूं ये ज़रूरी तो नहीं!

वतन ए हिंद हूं मैं !

वतन ए हिंद हूं मैं ! क्या सोच के तू मुझे आंखें दिखाता है ! कितने दरिया मेरे अंदर बहते हैं! कितने फौलाद मेरे दिल में रहते हैं ! एक का भी रुख अगर तेरी तरफ मोड़ दू मैं! तेरी सारी कायनात को वीराना बना के छोड़ दूं मैं! ये मेरी है रहनुमाई जो बख्शा है अभी तक तुझको! चाहूं तो तेरी गर्दन दूर से ही मरोड़ दू मैं !

मैं फलक से उतार

मैं फलक से उतार कर एक नई कहानी लाऊंगा! जो ना कह सका अब तक तुझ से शायद वो अब भी ना कह पाऊंगा! लेकिन तेरे लिए ही एक बार फिर इस दुनिया में लौट के आऊंगा!

तुझ को याद करके

तुझ को याद करके मेरा दिल बस रोता है! तेरी बात करके ही खुश होता है! मुझको मालूम है तुझको नहीं गवारा मेरा ये एहसास भी! मैं तेरी खुशी के लिए इस एहसास को भी सीने में ही दफन कर लूंगा! अब मैं तुझसे कुछ ना कहूंगा! बस खुद से ही तेरी बात कर लूंगा! अब ये मेरी ज़िद है कि तेरे एहसास के साथ ही जिऊंगा! और तेरे एहसास के साथ ही मरूंगा! मगर अब नहीं मैं तुझसे भी तेरी बात करूंगा!

खलिश

जब अपनी ही खलिश दिल को चुभने लगे! जब जिंदगी किसी मोड़ पर आकर रुकने लगे! जब अपने ही जज्बात मुंह मुड़ने लगेे! जब तेरे हालात तुझ को तोड़ने लगे! तो समझ लेना ये वो दौर है! तेरी कहानियों में अब बदलाव का मोड़ है! अब तुझको खुद के साथ ही चलना है! गिर के खुद ही संभलना हैै! नहीं किसी और को तुझ को खुद को ही बदलना है! ये तेरे जज्बात का वो दौर है! तेरी कहानियों में बदलाव का मोड़ है! तेरी कहानियों में बदलाव का मोड़ है!

वो दो कदम क्या साथ चल दिया

वो दो कदम क्या साथ चल दिया! हम उम्र भर उसकी बात करते रहे! वो दूर जाता रहा हम मिलने की फरियाद करते रहे! वो हम से आंखें चुरा ता रहा! हम दिल ही दिल में उसे याद करते रहे! वो जिस मोड़ पर गया छोड़ कर! हम बरसो खड़े उसी मोड़ पर उसका इंतजार करते रहे! वो अपनी दुनिया सवार्ता रहा! हम उसे अपनी दुनिया बना के खुद को बर्बाद करते रहे! ज़िद थी वो हमारी इसलिए तो आज तक हम उससे प्यार करते रहे! उसकी चाहत को बनाकर आरजू हम अबतक खुद से ही लड़ते रहे! वो दो कदम क्या साथ चल दिया हम उम्र भर उसकी बात करते रहे

अब तो कोई मेरे दर्द को हवा दे

अब तो कोई मेरे दर्द को हवा दे ! जिसे चाहते हैं कोई तो उसे जा के बता दे! झूठ ही सही पर एक बार वो भी नजरों से इजहार जता दे! मेरी रुकी हुई धड़कन को फिर से चला दे!