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Showing posts from March, 2019

मैं देश में बिखरा हुआ बस एक प्रचार हूंं

मैं देश की अधूरी सी कहानी का एक किरदार हूं। मैं देश में बिखरा हुआ बस एक प्रचार हूंं। हालांकि मैं लोकतंत्र का अटूट आधार हूं। मैं जनता के अधिकारों की धार हूं। पर आजकल मैं बस राजनेताओं की राजनीति का एक उपहार हूं। अब तो लगता है मैं बस वोटों के लिए बटती हुई शराब का इंतजार हूं। लगता है अब तो बस मैंं  प्रचार के लिए खरीदी गई कोई कार हूं। अब तो महसूस होता है जैसे मैं दीवारों पर चिपके हुए पोस्टरों का बस  इश्तिहार हूं। हां मैं लोकतंत्र का अटूट आधार हूं। पर आजकल मैं भी इतना लाचार हूं। कि भ्रष्ट दलबदल की राजनीति में घिरा हुआ बस एक हाहाकार हूं। हां मैं ही हूं आकर जाने वाले 5 साल का इंतजार, माना की मैं ही हूं देश की जनता का एक अधिकार , पर अब मैं रह गया हूं, बस लुटेरों के थैले का बाजार। जी हां, मैं ही हूं जिसे सब कहते हैं चुनाव। हां मैं ही हूं नेताओं का वर्तमान और जनता का भविष्य। जो 5 साल में एक बार आता है फिर अंधेरों में डूब जाता है। जो नेताओं की लाल बत्ती जला जाता है। और जनता की बत्ती बुझा जाता है। जो भ्रष्ट नेताओं का परचम लहरा जाता है। जो फिर से अंधेरों में देश को 5 साल के लिए ड

मैं अपना हर ग़म क़लम की स्याही को दे दूं

मैं अपनी हर गम ए दास्तां ख़ामोशी से कह दूं ये जरूरी तो नहीं! मैं उसके अल्फाज़ों को भी अपनी ही आवाज़ दे दूं ये ज़रुरी तो नहीं! उसकी दास्ताने ग़म के सिवा और भी गम है ज़िंदगी में! मैं अपना हर ग़म क़लम की स्याही को दे दूं ये ज़रूरी तो नहीं! मैं बिखरे हुए अल्फाज़ों को कागज़ पे समेटू और  वो कागज़ किसी और को दे दूं ये ज़रुरी तो नहीं! मैं अपनी शायरी में ज़िक्र करूं जिसका मैं अपनी दुआओं में फिक्र करूं जिसकी और उसका नाम जमाने के सामने ले दूं ये ज़रूरी तो नहीं! मैं अपना हर ग़म क़लम की स्याही को दे दूं ये ज़रूरी तो नहीं!