तिनका तिनका भ्रम
Written by Suman Vashisht Bharadwaj तिनका तिनका कर मैं भ्रम बुनता गया। किसी की ना सुनी बस अपने ही दिल की सुनता गया। ना थी मंजिल ना रास्ते थे फिर भी मैं मुकाम चुंता गया। तिनका तिनका कर मैं भ्रम बनुता गया। दिल ने मुझसे कहा तू यहीं रुक जा मैं रुक गया दिल को क्या मालूम था ये मेरा मुकाम नहीं है। मेरी मंजिल नहीं है यहां मेरा नाम नहीं है। इस दुनिया को इंसानियत से कोई काम नहीं है। सोच जब तेरे दिल में ही तेरे लिए स्वाभिमान नहीं है। तो तेरी अपनी कोई पहचान नहीं है शान नहीं है आन नहीं है। और छूट की इस दुनिया मैं आच्छाई का कोई क़द्रदान नहीं है। अगर दिल कि ना मैं सुनता तो क्या तिनका तिनका कर भ्रम बुनता। क्या तब भी मेरी यही पहचान होती। झूठ की दुनिया में क्या सच की यही शान होती।