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Showing posts from August, 2019

शायर हूं मैं 0

1. प्यार करता हूं जज्बात रखता हूं  कोई कुछ भी कहे मुझसे पर मैं अपने दिल की ही सुनता हूं हालात कितनी भी हो मेरे खिलाफ  पर मैं अपनी राह खुद ही चुनता हूँ। 2. ये मसले हैे कुछ यूं हल्ला हो पाएंगे  दिलों के जख्मों यूं ही मरहम ना हो जाएंगे बीते हुए कल के गम आज हमदम ना हो जाएंगे 3. मैं फलक से उसके लिए चांद भी ले आता वो कहता तो मैं पूरा आसमान भी ले आता, वो कहता तो सही मैं उसके लिए अपनी जान   भी दे आता  साथ उसका मुझे जान से भी बढ़कर था  पर उसके दो अल्फ़ाज़ जुदाई वाले मैं कहां से  पता   वो कहता तो मैं उसके लिए जान भी दे आता। 4. मैं उल्फत के वो सारे फसाने पीछे छोड़ आया।          मैं अपनी दोस्ती के वो हसीन जमाने के पीछे छोड़ आया अब तो तन्हा खड़ा हूं इस मोड़ पर।  हा मैं अपने बचपन के वो सारे ठिकाने पीछे छोड़ आया।  बस उन हसीन यादों का दर्द साथ ले आया। जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया। 5. कहीं ख्वाबों की बारिश है कहीं सपनों की फरमाइश है  जिंदगी दोस्तों बहुत बड़ी आजमाइश है। 6. किस्मत ने जैसा चाहा वैसे ढल गए हम  बहुत  संभल के चले फिर भ

यूं जो तूम मुझसे

यूं जो तूम मुझसे दूर जाने की साजिश कर रहे हो यूं जो तुम मुझसे दूर जाने की साजिश कर रहे हो मुझे मालूम है दिल ही दिल मुझसे मिलने की भी गुजारिश कर रहे हो। मुझे आता है तुम को मनाना मगर मैं क्यों मनाऊं मुझे आता है तुम को मनाना मगर मैं क्यों मनाऊं तुम्हारी साजिशों को और क्यों बढ़ाऊं (Written by Suman Vashisht Bharadwaj)

कोई पागल समझता है, कोई दीवाना समझता है

written by Suman Vasistha Bhardwaj कोई पागल समझता है, कोई दीवाना समझता है मेरी मोहब्बत को यहाँ हर कोई,अफसाना समझता  है डूब कर इस तरह मेरा मोहब्बत में दीवाना हो जाना,  कहां कोई स्याना समझता है, प्यार को मेरे कहां ये जमाना समझता है। मेरी मोहब्बत को यहाँ हर कोई फसान समझता है यहाँ मीरा को समझते हैं कबीरा को समझते हैं मगर मोहब्बत में डूबे हुए, फकीरा को यहाँ कौन समझता है मुझे जमाने को नहीं समझाना,मुझे उसको है बतलाना जिसे मेरा दिल अपना ठिकाना समझता है। मेरी आंखों से बहते आंसू मेरी चाहत की निशानी है जो वो समझे तो सीप का मोती, जो वो ना समझे तो बारिश का पानी है समुंदर पीर का जो अन्दर है, ये मेरे प्यार की पावन सी कहानी है मेरी चाहत को दिल में तू बसाले ना, मगर सुनले जो मेरे दिल की ना हो पाई, वो तेरे भी दिल की होना सकेगी इस भवरे की कहानी बस उस कुमुदिनी को सुनानी है जो राध की श्याम ने ना जानी, जो सीता की राम ने ना मानि,  हमारी भी बस यही कहानी है, चहता की बस यही दस्तूर निशानी है ,  के सच्चे आशिक को मिलती पागल और दीवानों की ही नाम ए निशानी है।

जाने क्यों तेरी तारीफ करना

Written by Suman Vashisht Bharadwaj तबस्सुम की पहली ग़ज़ल है तू मेरे शहर में आया हुआ वो कल है तू जिसे देखकर धड़कती है मेरी धड़कन मेरा बीता हुआ वो पल है तू। माना कि महबूब सी महबूब है तू परियों से भी खूब है तू गुलशन में खिले हुए गुलाब की तरह कोई नायाब फूल है तू तितलियों के रंग जैसा कोई नूर है तू और एक खूबसूरत कोहिनूर है तू। जाने क्यों तेरी तारीफ करना दिल को इतना भाता है जबकि मालूम है तुझे अपने हुस्न पर भी गुरूर आता है। तोड़कर दिल मेरा तू हर बार इस तरह ही मुस्कुराता है तेरी हर अदा में बेवफाई का रंग नजर आता है वो बेरुखी से नजरें चुराना तेरा दुपट्टा झटका के यूं चले जाना तेरा आज भी याद है मुझको वो ज़माना तेरा जाने क्यों तेरी तारीफ करना फिर भी दिल को भाता है। तेरी हर अदाएं किरदार पर दिल ग़ज़ल लिखना चाहता है मुझे तेरी बेवफाई का अंदाज़ भी बहुत पसंद आता है जाने क्यों तेरी तारीफ करना आज भी दिल भाता है।

प्यार में तिरस्कार

अभी अभी तो आया हूं, अभी जाने की बात करते हो। मैं तुमसे बेपनाह प्यार करता हूं, तुम बार-बार मेरा तिरस्कार करते हो। इतना ना सोचो मेरे बारे में, मैं तुम्हें समझ नहीं आऊंगा। मैं घोर की धूप नहीं जो ढल जाऊंगा। मैं उगता हुआ सूरज भी नहीं जो शाम होते ही उतर जाऊंगा। मैं वो नदी भी नहीं जो समुंदर में मिल जाऊंगा। मैं वो हवा भी नहीं जो चलते चलते थम जाऊंगा। मैं वो रात भी नहीं जो सुबह में बदल जाऊंगा। मैं वो भंवरा भी नहीं जो हर कली पर मचल जाऊंगा। मैं वो प्रेमी हूं जो तुम्हें पाने की चाहत में हर हद से गुजर जाऊंगा। बार-बार इतना तिरस्कार देख तुम्हारा एक दिन मैं भी तुम्हारी तरहा ही बदल जाऊंगा। फिर जब भी सोचोगे मेरे बारे में, फिर जब भी सोचोगे मेरे बारे में तुम। तो मैं तुम्हें तुम्हारी तरह ही पत्थर दिल नजर आऊंगा, पत्थर दिल नजर आऊंगा,मै भी एक दिन बदल जाऊंगा। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

ता उम्र हम जीने की जद्दोजहद

ता उम्र हम जीने की जद्दोजहद करते रहे, जिंदगी हमसे हम जिंदगी से लड़ते रहे। उम्मीदों की गागर भर्ती रही झलकती रही। जिंदगी कतरा कतरा कर गुजरती रही। ख्वाहिशें बनती रही बिगड़ती रही। सपने आंखों में चढ़ते रहे उतरते रहे। हम जिंदगी जीने की ख्वाहिश से आगे बढ़ते रहे। मुश्किलें हर मोड़ पर हमारे कदम पकड़ती रही। कभी वो हमसे कभी हम उस से लड़ते रहे। जिंदगी में खुशियों के पड़ाव भी आए, गम के ठहराव भी आए। लेकिन हमारे कदम किसी मोड़ पर ना डगमगाए। हम जिंदगी की जद्दोजहद से कभी ना घबराए। अगर हम हारे तो मौत से हारे, जिंदगी हमें कहां हरा पाई। हालांकि जिंदगी जीने की जद्दोजहद में मौत की फिक्र भी हमें कभी कहां सता पाई। वो बात और है कि जिंदगी की जद्दोजहद करते करते, जिंदगी हमें अपने आखिरी पड़ाव पर ले ही आई। मौत की गोद में सुला कर खामोशी की लोरी सुना कर, जिंदगी चुपके से जुदा हो गई।                मौत बनी महबूबा, जिंदगी बेवफ़ा हो गई। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

वो खुद को खुदा कहता है

वो खुद को खुदा कहता है । मेरा रहनुमा कहता है। जो खुद पत्थर की मूरत में रहता है। दर्द मैं सहता हूं हालात वो देता है। आंसू मैं बहाता हूं वजा वो देता है। धड़कन मेरी चलती है सांसे वो देता है। जज्बात मेरे होते हैं एहसास को देता है। खुशी या गम मेरा होता है, मगर उन्हें आवाज वो देता है। मेहनत मेरी होती है मगर फल वो देता है। जो खुद पत्थर की मूरत में रहता है खुद को खुदा कहता है। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

कैसे आ जाती हैं तुमको नींद बगैर कुछ कहे

कैसे आ जाती है तुमको नींद मुझसे कुछ कहे बगैर। मुझे तो नींद में भी तुमसे कुछ कहना होता है। बगैर मेरे बारे में सोचे कैसे सो जाते हो तुम।  मुझे तो नींद में भी बस तुम्हारे बारे में सोचना होता है। क्यों नहीं होता तुम्हें मेरे सपनों का एहसास। मुझे तो तुम्हारे हर सपने का एहसास होता है। क्योंकि तुम नींद में भी बेरहम होते हो। पर मुझे नींद में भी तुम्हारा ही इंतज़ार होता है। इसलिए तो तुम सुकून से सोते हो, और मेरी पलकों को नींद में भी आंसुओं से भिगोते हो। (सुमन वशिष्ट भारद्वाज)

दोस्ती के जमाने

दोस्ती के जमाने कभी पुराने नहीं होते। और दोस्त कभी बीते हुए अफसाने नहीं होते। अगर सच्ची है दोस्ती तो दिल से बाहर कभी दोस्तों के ठिकाने नहीं होते। ए दोस्त दोस्तों की पहचान कभी मुश्किल में ना कर तू। क्योंकि सच्चे दोस्तों के दिल में कभी गिले-शिकवे पुराने नहीं होते। साथ जो तेरी हर मुश्किल में खड़े होते हैं दोस्त वही तो सबसे बड़े होते हैं। जो तेरे हर गम में तेरा साथ निभाते हैं, तेरी हर खुशी में खुशी के आंसू बहाते हैं, और गुस्से में तुझे गाली भी दे जाते हैं, वही दोस्त तो तेरी उंगली पकड़ हर मुश्किल पड़ाव पर तुझे राह भी दिखाते हैं। तू कहां है सही, कहां है गलत नहीं वो तुझे ये जताते हैं, बस तेरे हर सही तेरे हर गलत में तेरे साथ खड़े हो जाते हैं। जो तुझे तुझ से भी ज्यादा चाहते हैं, तेरे लिए रातों को जाग जाते हैं, घर की खिड़की खोल तेरे लिए पीछे के रास्ते से भाग आते हैं, वही दोस्त तो उम्र भर याद आत हैं। इसी लिए दोस्तों दोस्ती के जमाने कभी पुराने नहीं होते, और दोस्त कभी बीते हुए अफसाने नहीं होते, दिल से बाहर कभी दोस्तों के ठिकाने नहीं होते। Written By Suman Vashisht Bhardwaj

खाली किताबों के पन्नों पर

मैं आजकल बेबसी की खाली किताबों के पन्नों पर अपनी किस्मत के सारे राज लिख रहा हूंl बंद लिफाफो मैं आजकल बीता हुआ हर पल हर बार लिख रहा हूं। टूटी हुई कलम से मैं आजकल आने वाले कल की हर हलचल लिख रहा हूं। बेकसी के मैं आजकल सारे मंजर लिख रहा हूं। डूबती हुई कश्ती को आजकल मैं पूरा समुंदर लिख रहा हूं। और आंधी में टूटी हुई छत को भी मैं आजकल घर लिख रहा हूं। मैं बेबसी के सारे मंजर लिख रहा हूं। धरती के सीने में खुपा हुआ मैं खंजर लिख रहा हूं।आजकल मैं हरे-भरे मैदानों को भी बंजर लिख रहा हूं। मैं उम्मीदों की हर किरण को  नाउम्मीदी की ख़ाक लिख रहा हूं। और श्मशान में जलती हुई चिताओं को मैं जिंदगी का आखिरी पड़ाव लिख रहा हूं। मैं ज़िन्दगी के बेबस खाली पन्नों पर अपनी किस्मत का हर एक अल्फाज लिख रहा हूं। Suman Vashish Bharadwaj