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शायरी-तबस्सुम की पहली गजल है तू, मेरे शहर में आया हुआ वो कल है तू
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मेरे शहर में तुम खाली से मका ढूंढते हो
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मेरे शहर में तुम खाली से मंका ढूंढते हो मेरे शहर में तुम खाली से मंका ढूंढते हो। करके मेरे शहर की गलियों को बर्बाद तुम मेरे शहर में ही छुपने के लिए खुद मुका ढूंढते हो कैसे बेदर्द हो तुम, और कैसे बेदर्द हो तुम मार के इंसान को ही अपने अंदर इंसा ढूंढते हो। उस रब ने उस खुदा ने उस भगवान ने तो धरती पर, उस रब ने उस खुदा ने उस भगवान ने तो धरती पर इंसान के रूप में इंसानियत भेजी थी। मगर बांट कर तुम इंसानियत को धर्मों में, मगर बांट कर तुम इंसानियत को धर्मों में, फिर धरती पर उसी इंसान के ख़ूके निशान ढूंढते हो। खुद को कहते हो अमन और चैन का मसीहा खुद को कहते हो अमन और चैन का मसीहा और बाकी सब में शैतान ढूंढते हो। खो गई है सुकून ए रौनक मेरे शहर की खो गई है सुकून ए रौनक मेरे शहर की जब से तुम नेता ए मेहमान बनके मेरे शहर में घूमते हो। ना करो बार-बार तार तार मेरे शहर को ना करो बार-बार तार तार मेरे शहर को अपनी सियासत के लिए अभी ये खामोश है, इसे खामोशी से ही अपनी बात कहने दो। जो फूटा इसका ज्वालामुखी तुम्हारी सारी सियासत जल जाएगी जो फूटा इसका ज्वालामुखी तुम्हारी सारी सियासत जल जाएगी तुम्हारी सारी हैसियत