वतन ए हिंद हूं मैं !

वतन ए हिंद हूं मैं !
क्या सोच के तू मुझे आंखें दिखाता है !
कितने दरिया मेरे अंदर बहते हैं!
कितने फौलाद मेरे दिल में रहते हैं !
एक का भी रुख अगर तेरी तरफ मोड़ दू मैं!
तेरी सारी कायनात को वीराना बना के छोड़ दूं मैं! ये मेरी है रहनुमाई जो बख्शा है अभी तक तुझको! चाहूं तो तेरी गर्दन दूर से ही मरोड़ दू मैं!

Comments

Popular posts from this blog

बस दो लफ्जों में खत्म मेरी कहानी हो गई

ऐ ग़ालिब बहुत आए होंगे तेरी महफिल में