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Showing posts from May, 2018

ग़ालिब की शान में कुछ पंक्तियाँ

ग़ालिब वो किताब है जिसे पढ़ता हर आशिक बेकरार है! ग़ालिब वो किताब है जिसे पढ़ता हर आशिक बेकरार है! ग़ालिब वो नशा है जिसमें अजीब सा खुमार है! ग़ालिब वो नशा है जिसमें अजीब सा खुमार है! ग़ालिब वो आईना है जिसके लिए आज भी हर नूरे नज़र बेकरार है! और ग़ालिब वो बज़्म है जिसमें मोहब्बत का हर एक अल्फाज है! ग़ालिब की कलम से लिखी, मोहब्बत की हर दास्ताँ आज भी बयाँ होती है! ग़ालिब की कलम से लिखी, मोहब्बत की हर दास्ताँ आज भी बयाँ होती है! कहीं तन्हाई में आज भी मोहब्बत रोती है! कहीं महफ़िलों में आज भी जामो की चर्चा होती है! कहीं आज भी रूह को छू जाता है एक दुपट्टा! कहीं आज भी एक चेहरा किसी दिल को धड़काता है! कहीं आज भी आशिकी सिसक के रोती है! कहीं आज भी मोहब्बत चुपके से पलकें भिगोती है! तो कहीं आज भी दिल लगी की वो ही अदा होती है! आज भी कहीं प्यार की एक नई दस्त रोज ही जवाँ होती है! आज भी शायरी के दौर यूँ ही जमाए जाते है! आज भी शायरी के दौर यूँ ही जमाए जाते है! आज भी आशिकी किस्से सुनाए जाते है! ग़ालिब तेरे एक-एक अल्फाज को आज भी पढता है जमान! ग़ालिब तेरे एक-एक अल्फाज को आज भी पढता है

मेरा कारवां एक रोज निकला जा उस से टकरा गया!

मेरा कारवां एक रोज निकला जा उस से टकरा गया! मेरा कारवां एक रोज निकला जा उस से टकरा गया! मुझे उस में जाने कौन सा नूर नजर आ गया! मुझे उस में जाने कौन सा नूर नजर आ गया! ये कुदरत का कोई फरमान था या किस्मत की कोई भूल थी! ये कुदरत का कोई फरमान था! या किस्मत की कोई भूल थी! वो गुलों का फूल था,वो गुलों का फूल था! मैं धरती की धूल था,वो गुलों का फूल था! मैं धरती की धूल था! उसके अपने उसूल थे मेरा अपना उसूल था! उसके अपने उसूल थे मेरा अपना उसूल था! मिलाना खुदा की मर्जी थी, मिलाना खुदा की मर्जी थी! जुदा करना जमाने का दस्तूर था! मिलाना खुदा की मर्जी थी,जुदा करना जमाने का दस्तूर था! शायद यही मेरी किस्मत का कसूर था! शायद यही मेरी किस्मत का कसूर था! उससे मिलकर जुदा हो जाना मेरी तकदीर को मंजूर था! उससे मिलकर जुदा हो जाना मेरी तकदीर को मंजूर था!

कारवां

न कारवां अकेला है न मंजिल ए तन्हाई! न जाने क्यों फिर भी पूरा जहां  खामोश सा लगता है! बस एक निगाह की तलाश में जाने क्यूँ मेरा कारवां दर दर भटकता है! और कोई समझा दे मुझे जिसकी तलाश है वो मुझमें ही कहीं बसता है!