कारवां
न कारवां अकेला है न मंजिल ए तन्हाई!
न जाने क्यों फिर भी पूरा जहां खामोश सा लगता है!
बस एक निगाह की तलाश में जाने क्यूँ मेरा कारवां दर दर भटकता है!
और कोई समझा दे मुझे जिसकी तलाश है वो मुझमें ही कहीं बसता है!
न कारवां अकेला है न मंजिल ए तन्हाई!
न जाने क्यों फिर भी पूरा जहां खामोश सा लगता है!
बस एक निगाह की तलाश में जाने क्यूँ मेरा कारवां दर दर भटकता है!
और कोई समझा दे मुझे जिसकी तलाश है वो मुझमें ही कहीं बसता है!
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