ग़ालिब की शान में कुछ पंक्तियाँ

ग़ालिब वो किताब है जिसे पढ़ता हर आशिक बेकरार है!
ग़ालिब वो किताब है जिसे पढ़ता हर आशिक बेकरार है!
ग़ालिब वो नशा है जिसमें अजीब सा खुमार है!
ग़ालिब वो नशा है जिसमें अजीब सा खुमार है!
ग़ालिब वो आईना है जिसके लिए आज भी हर नूरे नज़र बेकरार है!
और ग़ालिब वो बज़्म है जिसमें मोहब्बत का हर एक अल्फाज है!
ग़ालिब की कलम से लिखी, मोहब्बत की हर दास्ताँ आज भी बयाँ होती है!
ग़ालिब की कलम से लिखी, मोहब्बत की हर दास्ताँ आज भी बयाँ होती है!
कहीं तन्हाई में आज भी मोहब्बत रोती है!
कहीं महफ़िलों में आज भी जामो की चर्चा होती है!
कहीं आज भी रूह को छू जाता है एक दुपट्टा!
कहीं आज भी एक चेहरा किसी दिल को धड़काता है!
कहीं आज भी आशिकी सिसक के रोती है!
कहीं आज भी मोहब्बत चुपके से पलकें भिगोती है!
तो कहीं आज भी दिल लगी की वो ही अदा होती है!
आज भी कहीं प्यार की एक नई दस्त रोज ही जवाँ होती है!
आज भी शायरी के दौर यूँ ही जमाए जाते है!
आज भी शायरी के दौर यूँ ही जमाए जाते है!
आज भी आशिकी किस्से सुनाए जाते है!
ग़ालिब तेरे एक-एक अल्फाज को आज भी पढता है जमान!
ग़ालिब तेरे एक-एक अल्फाज को आज भी पढता है जमान!
आज भी आशिक तेरी शायरी से दिल को बेहला जाते है!
और शायरों की महफिल में तेरे किस्से अक्सर दोहराए जाते है!
शायरों की महफिल में तेरे किस्से अक्सर दोहराए जाते है

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