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Showing posts from 2017

जीवन गैहराईं

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  मेरी कविता सच्चाई! यही सच और यही सच्चाई है! जीवन के हर पल में एक गैहराईं है! किसी के गीतों में किसी की कविताओं में! तो किसी की बातों में भी छुपी एक गहराई है! सोच कर देखो दर्पण में चेहरा तुम्हारा है! पर किस की वो परछाई है! और उस परछाई में छुपी कौन सी गहराई है!  झूठ से लड़ना है सच पर चलना है! शायद जीवन की यही कठिनाई है! सोच तो झूठी पर जीवन सच्चा है! शायद मेरे हर सपने ने मुझ को ही लूटा है!  दुनिया में हर कोई सच्चा है! पर मेरा ही चेहरा शायद झूठा है! दि ल अब ये सोच कर कितना टूटा है!

जानें मेरे देश को ये हुआ क्या

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मेरी कविता मेरा देश जानें मेरे देश को ये हुआ क्या हैं! जानें मेरे देश को ये हुआ क्या हैं! कहीं दर्द हैं,तो कहीं धुआ हैं! जानें मेरे देश को ये हुआ क्या हैं! जानें किस आग मे जल रहा मेरा देश! ये किस राह पे चल रहा मेरा देश! जिसमें कहीं आतंकवाद हैं, तो कहीं जातिवाद का मुद्दा है! तो कहीं असहिष्णुता की बहस हैं। तो कहीं आरक्षण का बोझ हैं। और कहीं धर्मों का टकराव हैं ! जानें मेरे देश को ये हुआ क्या है! जानें ये कौन सा नया इतिहास है! लोगों में ये कौन सा नया एहसास हैं! जिसके बोझ तले दबत जा रहा मेरा देश! आखिर मेरे देश को ये हुआ क्या! जिसका इतिहास इतना सुहाना था! ग्रंथो मे लिखा जिसका हर अफसान था! आज उस देश को ये हुआ क्या! कहीं दर्द है, तो कहीं धुआ है! कहीं दर्द है,तो कहीं धुआ है। जलती सी लो में अभी भी एहसास की समा हैं! जलती सी लो में अभी भी एहसास की समा हैं! संभालो मेरे देश को,मेरे देशवासियों! ये हमारी आन बान शान का जहाँ है! ना हिंदु का ना मुसलमान का ना शिक ना ईसाई का!  ये तो हर हिंदुस्तानी का प्यार हिंदुस्तान हैं। ये हमार हिंदुस्तान ह

सच की कहानी

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मेरी कविता सच की कहानी सच का अब कौन साथ देता है! झूठ के साथ हर कोई चल देता है!  सच की भी एक शान हुआ करती थी! उसकी अपनी एक पहचान हुआ करती थी! पर अब झूठ के पर्दे तले छुप गया है सच! दर्द बनकर लोगों की आँखों में चुभ रहा है सच! अब झूठ का बोलबाला है!  और सच का मुंह काला है! यह आज के जमाने का दस्तूर है! चारों तरफ बस झुठ का ही नूर है! अब जिंदगी के मायने बदल रहे हैं! सच और झूठ के आईने बदल रहे हैं! झूठ के आईने में छुप गया है सच!  लोगों के जेहेन में दर्द बनके चूभ रहा है सच!  यही सच की अधूरी कहानी है! सच्चाई को कहां अब पहचान मिल पनी है! सच्चाई की तो बस यही कहानी है! सच की आँखों में तो अब बस पानी है! सच की आँखों में तो अब बस पानी है!  सच को कहां अब पहचान मिलपानी है!

नया नगमा

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नया नगमा! अपनी आरजू अपना प्यार लिखता है! तेरे लिए ही तो हर बार लिखता है! होकर बेकरार ये दिले अंदाज़ लिखता है! मिलते नहीं किताबों में जो अल्फाज ये वो अल्फाज लिखता है! सोच कर तुझको ये रोज यार लिखता है! अपना ऐहले वतन अपना प्यार लिखता है! तेरे लिए ही तो हर बार लिखता है! होकर जुदा तुझसे ये दिल फिर भी तेरे लिए ही ऐ यार लिखता है! शायरी तेरा होना ना। तेरा होना ना होना दिल को महसूस होता नहीं! क्योंकि तू कभी दिल से दूर होता नहीं! माना कि तू मुझसे दूर है! माना कि दिल मजबूर है! मगर इसे तेरे पास होने का एहसास जरूर है!

उसकी ख़ामोशी

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मेरी कविता उसकी ख़ामोशी पन्ने उदासी के कुछ तो खोलदे! अपनी ख़ामोशी से कुछ तो बोलदे! ना सही मेरी नज़रों का मोल तेरी नजरों में!  अपनी ही नजरों का कुछ तो मोल दे! मेरे दर्द को अपनी ख़ामोशी से ही तौल दे! अब तो कुछ बोल दे! मुझे मालूम है तू क्यों उदास है! दूर होकर भी मुझसे तू मेरे पास है! मुझे मालूम है तू क्यों उदास है! तेरी तसवीर देख कर मुझे एहसास हो गया! तुझे भी किसी की तलाश है! मेरे दर्द का तुझे कुछ तो एहसास है! इस लिए तो तू आजकल चुप चाप है!

मंजिल का पता

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मेरी कविता मंजिल का पता मुझे मेरी जिंदगी से मिला दे ऐ खुदा! मुझे मेरी मंजिल का पता दे ऐ खुदा! चल और कुछ ना सही रास्ता तो बता दे ऐ खुदा!  माना कि तू ने ही दिया है ये जीवन! अब जीना भी सिखा दे ऐ खुदा! गमों से लड़ सकु सच्चाई पर चल सकु ऐसी तो कोई दुआ दे ऐ खुदा! मुझे भी जिंदगी के सही मायने बता दे ऐ खुदा! मुझे भी किसी मंजिल तक तो पहुंचा दे ऐ खुदा! तेरी होगी बहुत मेहरबानी! मुझे मेरे गम की दस्ता तो बता दे ऐ खुदा! मुझे मेरी मंजिल का पता दे ऐ खुदा! मुझे मेरी जिंदगी से मिला दे ऐ खुदा! मुझे वो ना मिल सके! तो उसके ना मिलने की बजह तो बता दे ऐ खुदा!

तेरी तारीफ

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तेरी तारीफ तो दिल ने बहुत की। पर तुझे समझ ही न आई।  फिर भी इन खामोश आंखो ने। तेरी तारीफ में एक पूरा समुंदर लिख डला। वो बात अलग है कि होट उसे गुनगुना न पाए।  आखिर हम तुझे कुछ भी समझ ही न पा ए।

मा.

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माँ के प्यार को समझो यारो जिसने तुझे हंसना सिखाया! जिसने तुझे चलना सिखाया! जभी तू रोया उसने ही तुझे चुप कराया! पर सोच कर तो देख उस भगवान समान माँ के हिसे में क्या आया! वो माँ ही थी जो रातों को तेरे लिए जागती रही! वो माँ ही थी जो अपना दर्द छुपा! तेरा दर्द कम करने को तुझे रात भर निहारती रही! रात भर मुझे दुलारती रही, पुचकारती रही! तेरा नाम बार-बार प्यार से पुकारती रही तेरे लिए सब से लड़ाई तुझको बचाती रही! पर सोच कर देख तू ,तुझे पाकर उसकी किस्मत में आखिर क्या आया! कभी तुने उसे बेदर किया, कभी दूर उसे अपना घर किया! वो फिर भी खामोश तेरा इंतजार करती रही! वो फिर भी अपने बच्चों से प्यार करती रही! कभी तेरे लौट आने का इंतजार करती रही! तू फिर भी ना आया। लेकिन तेरे एक पोस्ट ने फेसबुक पर मदर डे जरूर मनाया! तू माहन है तूने माँ की ममता को फेसबुक तक पोहचाया! ये भी अजीब है तरीका माँ से प्यार निभाने का! दर्द देकर उसे जमाने से छिपाने का!

जिंदगी की बेबसी

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मेरी कविता जिंदगी की बेबसी जिंदगी भी अधूरी रह गई! सांसो में भी दूरी रह गई! झूठ की इस दुनिया में सच की हार हो गई! जिंदगी भी अब तो दोस्तों बेकार हो गई! जिस दुनिया में आए थे बड़ी शान से! अब तो लगता है गिर गए अपने ही ईमान से! अब तक जी रहे थे अनजान से! सच जान के इस दुनिया का हम तो रह गए हैरान से! इस जिंदगी से तो मौत ही अच्छी है! कम से कम दोस्तों वो तो सच्ची है! झूठ की दिल्लगी से सच की बेबसी ही अछि है! अब तो लगता है दोस्तों किसी भी खुशी से गमों की दोस्ती ही अछि है! दोस्तों इस झूठी दुनिया से तो अपनी बेबसी ही सच्ची है! और झूठी शानओ शौकत से तो! यारों अपनी मुफलिसी ही अच्छी है! दोस्तों ये सच्ची!

तन्हाई--तलाश

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क्यों रोई थी तन्हाई मुझ पर क्यों खामोशी हंस रही थी! क्यों रोई थी तन्हाई मुझ पर क्यों खामोशी हंस रही थी! तेरे जाने के बाद तेरी यादें जाने क्यों दिल को डस रही है। जानें क्यों दिल को डस रही। कल अगर हम ना हो तुम खुद को उदास ना करना! ज़िन्दगी से कभी निराश ना होना! काफिले तुझको बहुत मिलेंगे! बस तू मंजिल की तलाश में रहना!

हौसले

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तुझे भी गम है नाकामी का, मुझे भी गम है। जिंदगी मगर बहुत कम है। आगे कदम तो बढ़ाओ मंजिल तो मिल जाएगी। क्योंकि हौसले तेरे भी बुलंद है, मेरे भी बुलंद है। जिंदगी में कुछ पाने की चाहत तुझे भी है,मुझे भी है। हां दुनिया में कुछ कर दिखाने की चाहत तुझे भी है,मुझे भी है ।

दास्तान ए आँखें

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दास्तान ए आँखें सुना है कि आँखों की कोई जुबा नहीं होती! मगर जो कला इनके पास है! वो पूरी कायनात में कहां होती है! खामोशी से दिल के जज़्बात बया करने की जो अदा इनके पास है! वो जुबा के अल्फाजों में कहां होती है! यही नुर है इन आँखों का! यही दस्तूर है इन आँखों का! की खामोशी में भी इन्हीं की दास्ता बया होती है! जब भी दिल की कोई नई कहानी जवा होती है! अकसर खामोश आँखें वहां होती हैं!

क्यों महफूज नहीं बचपन ?

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कोई अफसोस नहीं बीते वक्त के गुजर जाने का॥ कोई अफसोस नहीं बीतीे यादों के आने का॥ ये दर्द तो इस नए जमाने का॥ ये दर्द तो इस नए जमाने का॥ ये वक्त तो है उन नन्हे फूलों के गुनाहगारों को सबक सिखाने का॥ सोचो अफसोस है कितना उन नन्हे फूलों को न बचा पाने का॥ सोचो अफसोस है कितना उन नन्हे फूलों को न बचा पाने का॥   कैसा है दस्तूर इस नए जमाने का॥ कैसा है दस्तूर इस नए जमाने का।