जिंदगी की बेबसी
मेरी कविता जिंदगी की बेबसी
जिंदगी भी अधूरी रह गई!
सांसो में भी दूरी रह गई!
झूठ की इस दुनिया में सच की हार हो गई!
जिंदगी भी अब तो दोस्तों बेकार हो गई!
जिस दुनिया में आए थे बड़ी शान से!
अब तो लगता है गिर गए अपने ही ईमान से!
अब तक जी रहे थे अनजान से!
सच जान के इस दुनिया का हम तो रह गए हैरान से!
इस जिंदगी से तो मौत ही अच्छी है!
कम से कम दोस्तों वो तो सच्ची है!
झूठ की दिल्लगी से सच की बेबसी ही अछि है!
अब तो लगता है दोस्तों किसी भी खुशी से गमों की दोस्ती ही अछि है!
दोस्तों इस झूठी दुनिया से तो अपनी बेबसी ही सच्ची है!
और झूठी शानओ शौकत से तो!
यारों अपनी मुफलिसी ही अच्छी है!
दोस्तों ये सच्ची!
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