मैंने कब कहा तू मेरा संगीत है
मैंने कब कहा तू मेरा संगीत है!
तू तो मेरी बुझी सी आवाज का कोई गीत है! जिसको मैं अक्सर गुनगुनाता हूँ!
अकेले में बैठ के इसको ही दोहराता हूँ!
और तन्हा रातों में मैं इसके साथ मिलों दूर निकल जाता हूँ!
मिलों दूर किसी बस्ती में जाकर मैं इस के साथ घंटों लमहे बिताता हूँ!
और होते ही सुबह मैं फिर घर को लौट आता हूँ!
रात के इंतज़ार में, मैं पूरा दिन यूं ही बिताता हूँ!
फिर भी मैं इस गीत को संगीत कहां बना पाता हूँ!
इसीलिए तो मैं तुझे अपनी धुंधली सी आवाज़ का कोई गीत बताता हूँ!
जिसे मैं सोच कर भी दिल में ही दबा जाता हूँ!
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