तेरी तारीफ में दो अल्फ़ाज़

तेरी तारीफ में दो अल्फ़ाज़ कहना चाहता हूं!
देर ना हो जाए इसलिए आज कहना चाहता हूं!
एक तेरी झुकी पल्कों का अंदाज कहना चाहता हूं! दूजा तेरी खूबसूरती को परियों का नकाब कहना चाहता हूं!
तेरी पल्कों के नीचे वो परछाईयों का आना !
लगता है मैंने गुजाराहो वहां पूरा जमाना!
तेरे लिए ही अब हर जज्बात सहना चाहता हूं!
अब तेरी हर अदा को मैं अपने अल्फा़ज़ देना चाहता हूं!
तेरी तस्वीर को पढ़कर उस में छुपा हर राज अपने अंदर लेना चाहता हूं!
बस तेरी तारीफ में हर बार दो अल्फ़ाज़ कहना चाहता हूं!

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