कमबख्त ए आशिकी

कमबख्त ए आशिकी तेरी बाहों से निकलकर
अब उसकी पनाहों में जाने को दिल नहीं करता क्या खूब हैं हम जिसने बनाया हमको,
अब उसी से रिश्ता निभाने को दिल नहीं करता
और कितने खुदगर्ज हो गए हैं मोहब्बत में हम
कि अपने मां बाप को ही अपना बताने को दिल नहीं करता
दो कदम क्या चले गैर के साथ, अब बचपन की उंगली पकड़ अपने ही घर के आंगन में जाने को दिल नहीं करता।

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