चाहत से ज्यादा जुनून है

चाहत से ज्यादा जुनून है
कहां अब पहले जैसा सुकून है
एक हसरत थी जिंदगी में जो अब बदल गई है फितरत ऐ बेरुखी में, ना उसका है ना मेरा कसूर है कुछ आदतें हैं जो उसको ना कबूल हैं
कुछ आदतें हैं जो मेरा उसूल हैं
अब बस ठन गई है इसी में कि जिंदगी बीत जाएगी एक दूसरे को ना समझने की कमी में।

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