मैं पीने की मैं खाने में जाने की

मै पीने की मै खाने में जाने की आदत तो बहुत है हमको,
मगर कोई मेरे जमीर से पूछे, मगर कोई मेरे जमीर से पूछे कि मुझको इसकी इजाजत कौन देगा, ना पीने वाली वो पहले सी आदत कौन देगा

जो हसरतें थी सारी मै खानों में खाली हो गई 
चाहते भी अब तो जामों की सवाली हो गई
राहगुजर बन के रह गई जिंदगी मैं खानों के रास्ते पर
घर की गलियां तो अब अनजानी हो गई

जिन आंखों का नशा बिन पिए ही चढ़ जाता था वो आंखें भी अब तो बेगानी हो गई
जिस मैं कदे से थी कभी हमारी रंजिशें, अब वो मैं कदे ही हमारे ठिकाने हो गए

शराबी नाम हो गया अब हमारा, इसी नाम से हमारी पहचान हो गई
जिंदगी बिन पिए भी बदनाम थी क्या हुआ जो पीके और बदनाम हो गई
वो कल भी मेरी गलियों से अनजान थी आज और अनजान हो गई
मोहब्बत की दुनिया तो मेरी वैसे भी गुमनाम हो गई

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