कोई पागल समझता है, कोई दीवाना समझता है

written by Suman Vasistha Bhardwaj

कोई पागल समझता है, कोई दीवाना समझता है
मेरी मोहब्बत को यहाँ हर कोई,अफसाना समझता है
डूब कर इस तरह मेरा मोहब्बत में दीवाना हो जाना, 
कहां कोई स्याना समझता है,
प्यार को मेरे कहां ये जमाना समझता है।

मेरी मोहब्बत को यहाँ हर कोई फसान समझता है
यहाँ मीरा को समझते हैं कबीरा को समझते हैं
मगर मोहब्बत में डूबे हुए, फकीरा को यहाँ कौन समझता है
मुझे जमाने को नहीं समझाना,मुझे उसको है बतलाना
जिसे मेरा दिल अपना ठिकाना समझता है।

मेरी आंखों से बहते आंसू मेरी चाहत की निशानी है
जो वो समझे तो सीप का मोती, जो वो ना समझे तो बारिश का पानी है
समुंदर पीर का जो अन्दर है, ये मेरे प्यार की पावन सी कहानी है
मेरी चाहत को दिल में तू बसाले ना, मगर सुनले
जो मेरे दिल की ना हो पाई, वो तेरे भी दिल की होना सकेगी

इस भवरे की कहानी बस उस कुमुदिनी को सुनानी है
जो राध की श्याम ने ना जानी, जो सीता की राम ने ना मानि, 
हमारी भी बस यही कहानी है,चहता की बस यही दस्तूर निशानी है
के सच्चे आशिक को मिलती पागल और दीवानों की ही नाम ए निशानी है।

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